कोंकण का दुसरा भूत "कृष्माण्ड "

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                                       "कृष्माण्ड "


 

   नमस्कार दोस्तों ,  
                 आपने मेरा कल का पोस्ट तो जरूर पढ़ा होगा.... कल के पोस्ट में मैंने चकवा नाम के पिशाच  के बारे में लिखा था। ... तो आज मई आपको दूसरे पिशाच  के बारेमे बताने  जा  रहा हु। ...
     पिशाचों का दूसरा प्रकार है  कृष्माण्ड  .........                                                                        क्या है ये कृष्माण्ड  ????  चलो मई आपको आज बताता हु.. इसको अलग अलग भाषाओ में अलग अलग नाम  दिए गए है.. .... जैसे की अफ्रीका में नीग्रो लोग इसे ज़ोम्बी नाम से जानते है... . कृष्माण्ड और ज़ोम्बी में एक फर्क होता है  जैसे की ज़ोम्बी जिन्दा मृतात्मा  समाज जाता है.. मतलब कबर में दफनाए गए  मुर्दे  कुछ खास प्रक्रिया के बाद फिरसे जिन्दा हो कर अपना जीवन क्रम चालू करते है... .ऐसी कहावत ज़ोम्बी के बारे में बोली जाती है।
   मगर ये क्रिया अपने मेडिकक साइंस के खिलाफ है.. क्योकि एक बार मारने के कुछ दिन बाद मुर्दे में फिरसे जान आ जाना ये बात नामुमकिन लगाती है...
 ज़ोम्बी की एक खास बात मतलब की वो  बिना थके एक महीने तक काम कर सकता है.. ... उसको कोई थकान महसूस नहीं होती.. महीने भर बिना विश्राम लिये काम करना किसी  भी साधारण आदमी  के बस की बात नहीं है..  अमेरिका में ऐसी कहावते सुनी गयी है की एक महीना किसानों के एक ग्रुप ने लगातार काम किया और पैसा लेके गायब हो गए......
   ज़ोम्बी की तरह कृष्माण्ड एक परोपकारी पिशाच मन जाता है...
 जो लोग अपने जीवन में  पिशाच साधना या फिर पिशाच  सेवा  करते है.... उनकी मृत्यु के बाद वो कृष्माण्ड बनाने की संभावना  होती है.. उन लोगो ने पिशाचो  का माध्यम बनकर उनका  सन्देश  लोगो तक पहुचाने का काम किया होता है... बार बार माध्यम बनकर पिशाचों के काम  करने वाले लोग अपने मृत्यु के बाद उनकी आदतों के शिकार बन जाते है... उनको कीसी न किसी का नौकर बनाना अच्छा लगता है.... मगर मांत्रिक जब ऐसे पिसाचोंकों वश में करते है तब उनकी ये नौकर बनने की आदत  पीड़ा दायक बन  जाती है। ...क्योकि मांत्रिक से वे  कोई अच्छे काम की अपेक्षा नहीं कर सकते। .. ...
   कृष्माण्ड कहा पे पाए जाते है इसके बारेमे कुछ पुरानी बाते प्रचलित है.... कुछ लोग मानते है की बाभळी के पेड़ पर कृष्माण्ड का स्थान होता है। ..   कृष्माण्ड तैरता हुआ पिशाच मन गया है.. ...... जब किसी के पैर  में बाभळी का कांटा चुबता है  तब उस व्यक्ति को कृष्माण्ड बाधा होकर उसे ऐसा लगता है की वो आसमान में तैर रहा है....
   कृष्माण्ड पिशाचयोनि बहुत साल पुराणी है। .....इसका जिक्र पुराणों में भी मिलता है... कृष्माण्ड निरुपद्रवी सौम्य पिशाच है....उसको खुदकी विचारशक्ति और व्यक्तिमत्व नहीं   होता......
कल मिलते है एक नए पिशाच के साथ। ......                                  


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                                                                                                          धन्यवाद 

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